रांची के गोबर के दीये जगमगाएंगे बनारस के घाट, महिलाओं ने बनाए 7 लाख दीये

October 16, 2025
News Image

रांची। दीपावली की रोशनी इस बार पर्यावरण की सुरक्षा और महिला सशक्तिकरण का संदेश लेकर आ रही है। राजधानी रांची की ग्रामीण महिलाएं इन दिनों गोबर के दीये बनाने में जुटी हैं, जिनकी चमक झारखंड से निकलकर उत्तर प्रदेश के बनारस तक पहुंचने वाली है। बनारस के प्रसिद्ध अस्सी घाट समेत देशभर के कई शहरों से इन दीयों की मांग बढ़ी है।

कितनी है मांग?

· केवल बनारस से ही दो लाख दीयों का ऑर्डर मिला है। · रांची के स्थानीय बाजारों में अब तक ढाई लाख दीयों की बुकिंग हो चुकी है। · सुकुरहुटू गोशाला प्लांट में अकेले सात लाख से अधिक दीये तैयार हो चुके हैं। · यहां प्रतिदिन 7,000 से अधिक नए दीये बनाए जा रहे हैं।

कीमत और ख़ासियत

· आकार के आधार पर इन दीयों की कीमत ₹3 से ₹10 तक है। · यह दीये पूरी तरह इको-फ्रेंडली हैं। इस्तेमाल के बाद ये आसानी से खाद में तब्दील हो जाते हैं। · नदी में बहाए जाने पर ये मछलियों का भोजन बन जाते हैं, जबकि मिट्टी के दीये पानी को प्रदूषित करते हैं।

महिलाओं की मेहनत से बदल रही तस्वीर

इस पहल की शुरुआत रौशन सिंह और सोनाली मेहता के स्टार्टअप "गो-वर क्राफ्ट" ने पांच साल पहले की थी। उनका मकसद गोसेवा के साथ-साथ ग्रामीण महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाना था।

-

· आज रांची के कांके, चापूटोला, अरसंडे और धुर्वा जैसे इलाकों की 90 से अधिक महिलाएं इससे जुड़ चुकी हैं। · एक महिला प्रतिदिन 200-250 दीये बनाकर ₹400 से अधिक कमा रही हैं। · यह काम उन महिलाओं के लिए वरदान साबित हुआ है, जो घर की जिम्मेदारियों के कारण बाहर नहीं जा पाती थीं।

कैसे बनते हैं ये दीये?

1. सुखाना: सबसे पहले गोबर को सुखाकर उसका बारीक पाउडर बनाया जाता है। 2. मिश्रण: इस पाउडर में थोड़ा ताजा गोबर और चिकनी मिट्टी मिलाई जाती है। 3. मशीन में डालना: इस मिश्रण को मिक्सिंग मशीन में डाला जाता है। 4. सांचे में ढालना: फिर इसे अलग-अलग आकार के सांचों में दबाव के साथ भरा जाता है। 5. सुखाना और सजाना: तैयार दीयों को तीन दिन तक धूप में सुखाया जाता है और फिर प्राकृतिक रंगों से सजाया जाता है।

-

महिलाएं साधारण दीयों के अलावा 'ऊं', 'जय श्रीराम', 'शुभ लाभ' जैसे नक्काशीदार दीये, लक्ष्मी-गणेश की मूर्तियां और सजावटी तोरण द्वार भी बना रही हैं।

भविष्य की योजना

· गौसेवा आयोग के अध्यक्ष राजीव रंजन के नेतृत्व में अगले चरण में झारखंड के सभी जिलों की 5,500 से अधिक महिलाओं को इस पहल से जोड़ने की योजना है। · दिवाली के बाद महिलाओं को गोबर से अगरबत्ती, धूपबत्ती, जैविक खाद और गोकाष्ठ (गोबर की लकड़ी) बनाने का प्रशिक्षण दिया जाएगा।

-

इस तरह, गोबर के ये दीये न सिर्फ दीवाली को रोशन कर रहे हैं, बल्कि सैकड़ों महिलाओं के जीवन में आर्थिक आत्मनिर्भरता की नई उम्मीद भी जगा रहे हैं।